समाचार पत्र में प्रतिष्ठित साहित्यविंदू एवं ज्योतिषाचार्य डा0अशोक शर्मा
के आकस्मिक निश्वन का समाचार पढ़कर स्तव्थ रह गया।निधन से तीन
-चार दिन पूर्व ही डा0 शर्मा ने श्री वार्ष्णेय महाविद्यालय, अलीगढ़ में
वैचारिक मंच, ‘प्रज्ञा प्रबोध’ एवं अध्यापक शिक्षा-विभाग के संयुक्त
तत्वावधान में आयोजित भारत में हिन्दी और हम’ शीर्षक कार्यक्रम में
मुख्य वक्ता के रूप में पधार कर अपने एक घण्टे से अधिक के सार-
गर्भित वक्ृतव्य से ओताओं पर अपनी विद्वत्ा की अमिट छाप छोड़ी
थी। हिन्दी भाषा के उद्भव,विकास,संवैधानिक परिप्रेक्ष्य दशा एवं दिशा
पर उन्होंने अपने विचार पूर्ण प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत किये थें।
उन्होंने भारत में हिन्दी भाषा की वर्तमान दुर्दशा के लिए हमारी अंग्रेजी
परस्त मानसिकता को प्रमुख रूप से उत्तरदायी ठहराया था। उन्हींने
कहा था कि हिन्दी भाषा को राष्ट्र भाषा का सम्मान दिलाने के लिए ठोस
-सार्थक प्रयास करने की आवश्यकत्ता हैं और इसके लिए पहल हम
हिन्दी-भाषी क्षेत्र कें लोगों को हीकरनी होगी। कार्यक्रम में श्रेत्ताओं के
विशेष अनुरोध पर उन्होंने अपनी कई काव्य-रचनाएँ झुनाकर मरपूर
सराहना बटोरी थी। संभवत: यह उनके जीवन-काल का अंतिम काव्य
-पाठ रहा होगा। डा0 अशोक शर्मा का असामयिक निधन हिन्दी-
साहित्य-जगत्, ज्योतिष-जगत् एवं पं0बैजनाथ शर्मा प्राच्य विद्या शोध
संस्थान की अपूरणीय क्षति है। मैं डा0 शर्मा की पावन स्मृति को नमन्
करता हूँ। अंत में, ‘प्राच्य मंजूषा’ के डा0 अशोक शर्मा स्मृत्ति अंक
के सफल प्रकाशन हेतु मैं डाए राजेश कुमार को शुभकामनाएँ प्रेषित
करता हूँ।
एसोसिएट प्रोफेसर,
अध्यापक शिक्षा विभाग
श्री वाष्णेंय महाविद्यालय, अलीगढ़ |
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