ब्रेन-ड्रेन
आज सुबह से ही मधुवन में जाने कैसी हवा चली है। हर कनेर बीमार पड़ा है मुरझाई प्रत्येक कली है। …
Read Moreगुलाब से बातचीत
आज भोर के समय टहलते हुए अचानक पेरों तले दबे गुलाब की आह सुनी तो पँजा ऊँचा किये तनिक-सा मैं …
Read Moreवे बिन वे लोग
कहाँ हैं वे दिन’ जब कोयलें गाती थीं भौरे झूमते थे । कहाँ हैं वे लोग जो सुबह से शाम …
Read Moreरेखा और बिन्दु
हम दोनों एक ही रेखा के दो अन्त बिन्दु जेसे एक दूसरे से दूर बहुत दूर हैँ किन्तु, दोनों के …
Read Moreसावनी हवाओं से
सावनी हवाओं से आँख हुई नम | जी हाँ ! यह जीवन भी जीते हैं हम ॥ पथरीली भूमि और …
Read Moreकहीं पर धूप
कहीं पर धूप, कहीं पर छाया, समझ गये सब तेरी माया, बादल, जादा नहीं चलेगा, यह दोरंगा खेल । घुप्प …
Read Moreसोकले टूटी पड़ी हैं
सोकले टूटी पड़ी हैं, द्वार जब सबको खुले हैं। लोग जाने क्यों मुझे बदनाम करने पर तुले हैं | बादलो! …
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