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डा० रामेद्र मोहन त्रिपाठी

डॉ0अशोक शर्मा मेरे एकान्तिक मित्र थे। उनका असमय चले जाना हिन्दी
साहित्य की अपूरणीय क्षति है। यूँ तो वे मेरे कवि सम्मेलनों के साथी थे
अनेकआयौोजनों में वे मेरे साथ रहे परन्तु जब मैं हाथरस नगर पालिका
में अधिशासी अधिकारी के रूप में 996में पहुँचा तो वें मेरे अत्यन्त निकट
के मित्र हो गये। स्मृति के गवाक्ष खोलता हूँ तो उनकी निर्बाध हँसी आज
भी खनक उठती है।कवि होने के साथ उनका एक सफल ज्योतिषी होना
भी मेरे आकर्षण का विषय बन गया था | जब मैं शात्रि विश्राम के लिये
हाथरस में रुक जाता तो घंटों उनके सानिध्य का सुख मिलता था। उनकी
सहधर्मिणी आशा भाभी अतिथि सत्कार में जुटी रहती थीं,नाना प्रकार के
स्वादिष्ट पकवान बनाना उनकी रुचि में शामिल था, अशोक भाई भी
खाने खिलाने के शौ कीन थे, कई बार मैं सपत्नीक उनके आवास पर
गया हूँ।ज्योतिष की गहन गवेषणाओं में वे व्यस्त रहते थे उन दिनों वे सूर्य
सिद्धान्त पर शोध कर रहे थे।उन्होंमें मुझे बताया था कि अगर उनकी ये
शोध पूर्ण हो गई तो ज्योतिष विज्ञान में क्रान्तिकारी परिवर्तन आ जायेगा
पता नहीं अब कौन उनके इस अधूरे कार्य को पूर्ण करेगाश्यद्यपि उनके
पुत्र भी इसी कार्य में संलग्न हैं देखें भविष्य के गर्भ में क्या छिपा हुआ है ये
तो समय ही उत्तर देगा। मैंने जब उन्हें अपने पितृव्य स्व0 शम्मूदयाल
त्रिपाठी ‘नेह’ के साहित्य को दिखाया जो अप्रकाशित्त था त्ो वे तुरन्त
उनपर एक लघु शोध प्रबन्ध के लिये तत्पर हो गये और डॉ0 सुनन्‍्दा
महाजन के निर्देशन में श्रीमत्ती उमा गुप्ता से एक लघु शोंघ प्रबन्ध प्रस्तुत
कराया। इससे सिद्ध होता है कि उनकी पारखी दृष्टि अद भुत मेघा से
वीप्तिमान थी। प्रतिदिन हाथरस से धर्मसमाज कालेज,अलीगढ़ जाना
और सायंकाल हाथरस की महफिल में शामिल हो जाना,उनकी अवि
राम ऊर्जा का ही परिचायक था। रात्रिकालीन बैठक उनके घर पर ही
होती थी जहाँ उनके शिष्य और मित्र अबाध रूप से अपने-अपने आ
नन्द की सृष्टि करते थै। उन्हें ताश खेलने का भी बहुत शौक था|कविता
सुननेऔर सुनाने का आनन्द भी उनके घर का बौद्धिक मनोरंजन था।वे
स्वयं भी ऊर्जावान कवि थे,अनेक मंचों से भावपूर्ण काव्यपाठ करते
हुये मैंने उन्हें देखा और सुना है। उनका पहला काव्य संकलन’मन-
संपांती’ उनकी काव्य प्रतिमा का दिशा निर्देशन करता है।इस संकलन
की भूमिका में वे स्वयं इंगित करते हैं कि उनकी कविता माला या तुकों
के बन्धनों से मुक्त कविता है। वे भावपक्ष के प्रवल सरमथक कवि हैं।
प्रवाह और गति ही काव्य का जीव तत्व है। वें किसी वाद के समर्थक
नहीं रहे वरन्‌ काव्य की ऊर्जा के पुष्टि मार्गी कवि थे। शब्द की अर्न्त
ध्वनि में जो ऊर्जा अथवा शक्ति प्रवाहित होती है हम उसी को कविता
कह सकते हैं| यह कितना मौलिक और स्पष्ट विचार है|ईश्वर ने यदि
उन्हें कूछ और दिन दे दिये होते तो शायद काव्य जगत में एक नया
विस्फोट हो जाता। घुरातन मान्यताओं को तोड़ने वाला ही एक उद्मट
विचारक सिद्ध होता रहा है। अशोक शर्मा उसी स्रेणी के सैनिक थे,
पूर्णतःशब्द की सामर्थ्य से वार करने वाले योद्धा थे वे। उनकी वाणी में
ऑज था,गेयता न थी, लेकिन सुनने वाले को ये लगता था कि एक
पद से दूसरे पद की मैत्री अद्भुत घनत्व पैदा कर रही है जिस प्रकार
आसमान में असमान बादल तैरते रहते हैं परन्तु जब वे आपस में गुंफित
होते हैं तो समानान्तर घनघोर वर्षा जल की ध्वनि प्रकट हो जाती है,
उनकी कविता की यही विशेषत्ता है|गौष्ठी करना, काव्य रक्षिकों को
आमंत्रित करना उनकी आदत्त बन गई थी,इस कारण नगर के बुद्धि
जीवी उनके आसपास मंडराते रहते थे |बाजार में चहलकदमी करने
वाले उनसे अगली गोष्ठी की तिथि पूछा करते थे, याद दाश्त भी
अद्भुत थी, जहाँ बैठ गये वहीं साहित्यिक वातावरण की सृष्टि
कर देना उनका सहज स्वभाव था। उनके शिष्य उनसे मित्रवत रहते थे,
सहज वातावरण अचानक अटहास में परिवर्तित हो जाता था।फलित
ज्यौतिष के कूछ सूत्र उनके पास थे जो उनके पिताश्री ने उन्हें दिये थे
-वे अकाटूय थे। उनके आधार पर उनकी भविष्यवाणी ठीक उत्तरती थी।
वे इसको अपनेपूर्वजों की धरोहर मानते थे। विनप्नता का कोई पारावार न
था अतिथि उनकेलिये देवता होता और पूरा परिवार अतिथि सेवा में
लगा रहता था |कई बार आध्यात्मिक प्रवचन करने हेतु. वे विदेश यात्रा
पर भी गये परच्तु इसका उनको कोई दंभ नहीं था। अपनी प्रशंसा सुन
कर वे हमेशा मौन रह जाते | हाथरस उनके न रहने पर जी विहीन
लगता है| मुझे जब उनके गोलोक वासी होने का समाचार मिला तो एक
बार तो विश्वास ही नहीं हुआ कि अशोक भाई चले गये।जब वे इलाहाबाद
में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे मेरा तभी से उनसे पर्चिय था |मंच एक ऐसा
माध्यम है जो रचनाकाकरों को समीप ला देता है। देश के प्रख्यात मंचों
पर वे हमसे मिले थे इसलिये हाथरस पहुँचकर मैंने कभी ये नहीं अनुमव
किया कि यें शहर मेरे लिये नया है। वैसे ये शहर हास्य रस के लिये जाना
जाता रहा है परन्तु अशोक शर्मा ने हाथरस को भावुकता का शहर भी
बना दिया था|सतही कविता के लिये उनके घर में कोई स्थान नहीं था।
आज उनके संस्मरण लिखते समय मैरा मन दुःखी है,आदरणीया आशा
भाभी ने जब मुझसे फोन पर आग्रह किया कि स्वर्गीय डा0अशोक शर्मा
के संदर्भ में कुछ लिखूँ तो मेरे स्मृति पटल पर अनेकों छवियाँ तैरती रहीं,
किसे पकर्डू, किसे थाम, लेकिन वक्‍त का प्रवाह उनकी कविता की
तरह तरंगों पर सवार होकर यात्रा करता जा रहा है, मेरी मुट्ठी में जो
भी जल कण आ गये हैं,मैं उन्हें समर्पित करअपनी श्रद्धान्जलि दे रहा हूँ,
“एक बार सुन या तू हजार बार सुन।जिन्दगी नहीं मिलेगी बार-बारसुन।

                                440, प्रताप नगर
                               आगरा-10
                              मो0 08442264988
June 23, 2022

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