सन 4972-97के बीच विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के स्तर पर बड़ी
संख्या में हिन्दी प्रवक्ताओं की नियुक्ति हुई थी क्योंकि इसी काल खण्ड में
‘हिन्दी भाषा’ एक नये विषय के रूप में विश्वविद्यालय स्तर पर स्वीकृत
हुई। उस कालखण्ड के लगभग सभी प्रतिभाशाली हिन्दी छात्र महाविद्या
लयों में सेवा करने का अवसर पा गये थे। विविध महाविद्यालयों और विश्व
विद्यालयों से प्रथम श्रेणी में एम0ए0 हिन्दी किये हुए मेरे जैसे तमाम युवा
अनेक महाविद्यालयों में होने वाले साक्षात्कारों में बार-बार मिलते मिलाते
परस्पर गहरी आत्मीयता में बैँंध गये थे।डा0अशोक कुमार शर्मा से मेरी
भेंट ऐसे ही किसी साक्षात्कार के मध्य हुई थी। उस समय हम सब कालेजों
से सीधे-सीधे निकले थे। एक अबूझ उल्लास,भविष्य को लेकर आशंका,
नौकरी की चिन्ता, कुछ कर दिखाने का हौसला और ‘क्या होगा? जैसे
संश्लिष्ट भाव सबके मन को मिथते रहते थे। इसी सबके बीच हम मिलते
पारस्परिक वार्तालाप होता और शाम होते-होते साक्षात्कार समाप्त करके
हम लोग आशंकित और आशान्वित अपने-अपने गन्तव्यों की ओर प्रस्था
नित हो जातें। हम दोनों में एक समानता अल्पभाषी होने की थी परन्तु
समान चिन्तायें, समान समस्यायें और समान परिस्थितियों ने कई बार
मिलते-मिलाते हमें निकट ला दिया। बाद में उन्हें धर्म समाज कालेज अली
गढ़ और मुझे एस0आरएके0 कालेज फिरोजाबाद में नियुक्ति मिल गयी ।
नियुक्ति के प्रारम्भिक वर्षों में ही सम्भवतः १975 या १978 में नियति ने
हमें फिर एक बार लम्बे समय तक मिलने और साथ रहने का समय दिया।
वस्तुत्: हुआ यह कि किसी समय राजस्थान,मध्य प्रदेश और उत्त्तर प्रदेश
के बहुत बड़े भाग को अपनी परिसीमा में समेटने वाले आगरा विश्वविद्यालय
में से शनैः शने: कुछ भागों को तोड़कर कई नये विश्वविद्यालय बनाये गये।
उन्हीं दिनों रहेलखण्ड विश्वविद्यालय बरेली की नयी–नयी स्थापना हुई थी
और परीक्षा-परिणाम समय पर जल्दी घोषित करने की जद्वोजहद में वहाँ
केन्द्रीय मूल्यांकन किया गया था। मूल्यांकन केन्द्र था वर्धभान कालेज,
बिजनौर। उस समय आगरा विश्वविद्यालय में नये-नये नियुक्त हुए सभी
युवा प्राध्यापकों को उस केन्द्रीय मूल्यांकन में भाग लेने का अवसर मिला|
फिरोजाबाद से मैं डा0 गोविन्द पाल सिंह, डा0 राम सिंह शर्मा, मेरठ
से डा0 सूरजपाल शर्मा,अलीगढ़ से डा0 अशोक कुमार शर्मा,डा0रमेश
चन्द शर्मा और हाथरस से डा0उदयवीर सिंह शर्माआदि एक ही समय में
मूल्यांकनार्थ पहुँचे | सब लोग एक ही धर्मशाला में रुके | लगभग दस
दिन तक हम लोगों को साथ-साथ रहने, मूल्यांकन के बाद सायंकाल
निठल्ला घूमने, गप्प-गोष्ठियाँ करने और एक दूसरे को सुनने-सुनाने का
अवसर मिला। फलस्वरूप हम सबके मध्य गहरे आत्मीय सम्बन्ध बन गये।
मुझे याद है कि डा0 उदयवीर सिंह शर्मा के संचालन और हरदोई के डा
शिवबालक शुक्ल की अध्यक्षता में धर्मशाला के बड़े हॉल में एक बड़ी काव्य
-गोष्ठी आयोजित हुई थी। मैंने सस्वर ब्रजभाषा की रचनाओं का पाठ किया
था और डा0 अशोक कुमार शर्मा ने दो नवगीत सुनाये थे। डा0 शर्मा के
स्वर में एक सधाव था और उनके गीतों में समकालीनता का बोध था। वे
जीवन की जटिल अनुभूतियों को शैल्पिक सौन्दर्य के साथ व्यक्त करने की
कला में निष्णात थे।उनके गीत सुनकर मुझे लगा था कि गीत में सौन्दर्य,
प्रणण और लालित्य से हटकर भी कूछ सार्थक कहा जा सकता है |इसके
पश्चात हम सतत् जुड़े रहें। मैं साधारणतः नवसंवत पर उन्हें बधाई पत्र
अवश्य लिखता था। यत्र-तत्र और यदा-कदा मिल्नने-जुलने पर भी हमारी
गहन आत्मीयता में कभी
‘कमी नहीं आयी।
बाद में पता लगा कि डा0 शर्मा ने कविता का क्षेत्र छोड़कर वैदिक गणित
के क्षेत्र में प्रवीणता प्राप्त कर लीं है। यह मेरें लिए चौंकाने वाली सूचना थी
क्योंकि सामान्यतः हिन्दी-साहित्य के मर्मज्ञों का गणित कमजोर होता है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और प्रेमचन्द्र के गणित की अनिवार्यता के कारण
इण्टर में अनुत्तीर्ण होने का तथ्य मेरे सामने था|मेरे जैसा अक्रिंचन साहित्य
सेवी जीवनभर गणित से परेशान रहा।न कभी अपने वेतन मान का ज्ञान
रहा न आयकर का हिसाब लगाना आया। ऐसे में डा0 अशोक कुमार
शर्मा का वैदिक गणित का विशेषज्ञ होना मेरे लिए घनघोर आश्चर्य का
विषय था |वे केवल विशेषज्ञ ही नहीं थे कई बार विदेश जाकरे उस गणित
की धाक भी जमा आये |बाद में जब उन्होंने ‘प्राच्य मंजूषा’ का प्रकाशन
प्रारम्भ किया तो मैं उनकी ज्ञान-गरिमा,भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठाऔर
गहरी शोघवृत्ति से परिचित हुआ | आश्चर्यजनक रूप से काव्य से प्रारम्भ
करके वे गवेषणा के जिस चरमोत्कर्ष पर पहुँचे वह किसी के लिए ईर्ष्या का
विषय हो सकता है।
डाए शर्मा ज्ञान-गम्भीर,विनम्न,अमिजात्य के गौरव से परिपूर्ण,वैदुष्य की
आभा से मण्डित,सच्चे मित्र और भावुक प्रेमिल मन के धनी थे। उनके
जाने से मुझें एक ऐसे सहृदयबन्धु का अभाव हो गया है जो सहयात्री ही नहीं.
मार्गदर्शक भी थी | मैं गहरी व्यथा से अवसन्न हूँ। ईश्वर उनकी आत्मा को
शान्ति दे | वे स्वर्ग में भी नई शोध के द्वार खोलते रहेंगे, ऐसा मेरा विश्वास
है और उनकी चिर अतृप्त आत्मा फिर इस पृथ्वी पर अपने अधूरे शोध कार्य
को परिपूर्णता देने के लिए पुनर्जन्म लेगी।
86, तिलकनगर, बाईपास रोड
फिरोजाबाद-283203
मो0 94236779
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