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सुख कैसे प्राप्त हो ? भाग – 2

एक श्रोता का प्रश्न – आपने ये जो दस quality बताई हैं और कितनी क्वालिटी होती हैं, human being की ? जैसे शक, डर, प्रेम, श्रद्धा, ये इन्ही दस में आ जाते हैं क्या ? क्योंकि ये भी तो क्वालिटी ही है human being की ?

गुरु जी – न, न, न, न, ये अंग्रेजो की thinking है कि ये basic instincts हैं | हमारे यहाँ ये basic instincts नहीं माने गए हैं इसलिए ये human being की quality नहीं है | हम कह सकते हैं quality है, प्रॉपर्टी नहीं है | Quality और property में थोडा फर्क है | समझ रहे है कि नहीं | हर चीज की अपनी quality और property दोनों होती हैं | ये quality है, प्रॉपर्टी नहीं है, quality धीरे धीरे develop होती हैं |

वही श्रोता – प्यार is not a property ?

गुरु जी – ना ! मैं समझा देता हूँ, चलो | ये ध्यान रखना, इन सब बातों का end में करूँगा इस बात पर ले जा कर के, मैं पहले से बता देता हूँ,  कि हम सुखी जीवन कैसे जी सकते हैं, इन सबका end वहां होगा, मेरी बातों का | सारे दुखो का कारण, मैं ये बात बीच में clear कर दूं, सारे दुखो का कारण एक ही है, अज्ञान | क्योंकि हम जानते नहीं है चीजो को, इसलिए हम दुखी हैं | एक आदमी जो मोटर चलाना नहीं जानता, अब वो मोटर में बैठा हुआ है, दुखी है कि ये मोटर चल नहीं रही है | उसे नहीं पता कि ब्रेक कौन सा है और accelerator कौन सा है | वो ब्रेक पर पैर मार रहा है और कह रहा है मोटर नहीं चल रही है, मैं तो पूरे effort कर रहा हूँ | उसे पता होना चाहिए कि वो कहाँ पैर मार रहा है | उसे पता होना चाहिए कि ignition कैसे लगेगा मोटर में | Problem हमारी ये है कि हम जानना कुछ नहीं चाहते और सुख ढूंढ रहे हैं | अज्ञान से दुःख उत्पन्न होता है, ज्ञान से सुख उत्पन्न होता है | ये बात ध्यान में रखें, अब मैं आगे चलता हूँ |

पहले मैं आपकी एक बात का और जवाब दे दूं, बीच में, फिर आपकी इस बात का जवाब दूंगा | आपने बीच में एक प्रश्न पुछा था कि वेद पुराणों के बारे में बता दें | India में जो oldest text available है, वो वेद हैं | वेद शब्द का जो literal meaning है, वो है ज्ञान, वेद  किसी किताब का नाम नहीं है, ज्ञान किसी पुस्तक में नहीं  होता, ज्ञान किसी व्यक्ति के पास नहीं होता, ये ध्यान  रखियेगा, ज्ञान transferable property नहीं है, तो वो बुक्स में भी नहीं हो सकती, किसी गुरु पर  भी नहीं हो सकती है | ज्ञान सबके भीतर है, complete knowledge | इस पूरे संसार में फैली हुई है, wisdom of  knowledge जिसको हम कहते हैं | ज्ञान प्राप्त करने का मतलब है कि अपनी cognizance को उससे जोड़ दें, wisdom of knowledge में और उसमें घूमें जाकर, जब हमको जिस चीज की जरूरत पड़े, उठा लायें उसमें से | वो ज्ञान, वो wisdom of knowledge, that is वेद | वेद का literal meaning ये है | जिन चार बुक्स की बात की जाती है, जो oldest available books हैं, उनका नाम है, चार नाम बता रहा हूँ – ऋग्वेद सहिंता, not only ऋग्वेद, ऋग्वेद सहिंता पूरा नाम है उस book का | यजुर्वेद संहिता, दूसरी है | तीसरी है सामवेद सहिंता | चौथी है अथर्ववेद संहिता | The meaning of ऋग्वेद संहिता is, संहिता means collection, The collection of knowledge related to ऋत | जो ऋत मैंने अभी बताया, यानी ultimate truth.  वो सत्य जो यूनिवर्सल होता है हमेशा | जितने साइंस के नियम निकले हैं, चाहे वो law of gravity हो, चाहे वो law of motion हों, चाहे वो relativity की थ्योरी हो | ये सब universal truth हैं, ये सब ऋत हैं | यही ऋग्वेद में है और ऋग्वेद में कुछ नहीं है | इनसे related knowledge का नाम ऋग्वेद है | लोगों ने उसको भी religious मान लिया है |

एकाचमे तिश्रृचमे तिश्रृचमे पञ्चचमे पञ्चचमे सप्तचमे सप्तचमे नवचमे नवचम एकादशचम एकादशचमे त्रयोदशचमे त्रयोदशचमे |

ये एक मन्त्र है यजुर्वेद का | मन्त्र को बोल रहे हैं और शंकर जी पर जल चढ़ाए जा  रहे हैं | पंडित जी से पूछो, इस मन्त्र का meaning ? इसमें कहीं शंकर जी का नाम है ? अरे ! होता आ रहा है, बस ख़तम ! tradition है | पूरा मन्त्र mathematics सिखा रहा है | मन्त्र में बताया गया है, कैसे गिनतियाँ बनती हैं | numbers कैसे बनते हैं | मन्त्र में बताया जा रहा है, square कैसे निकला जाता  है | मन्त्र में बताया जा रहा है, कैसे पहाड़े बनते हैं | पहाड़े समझ रहे हैं ?

Tables, Tables (एक श्रोता)

हाँ, Tables | वो बता रहा है मन्त्र और शंकर जी पर जल चढ़ रहा है उस मन्त्र से | उससे अगला मन्त्र है –

चत्रश्चमे अष्टमचमे अष्टमचमे द्वादशचमे द्वादशचमे षोडशचमे षोडशचमे |

गिनती चल रही है, चार का पहाड़ा चल रहा है | चार, अष्टमचमे, चार दूनी आठ, द्वादश्चमे, चार तीया बारह, षोडशचमे, चार चौक सोलह | पहाड़ा चल रहा है, शंकर जी पर जल चढ़ रहा है | हाहाहा, मेरे बात को समझ रहे हैं या नहीं  |

ये बुरा हाल, सोचने समझने को तैयार नहीं किसी चीज को, मानने को तैयार नहीं  | सारे दुखों का कारण अज्ञान होता है | तो ऋग्वेद सहिंता का meaning है, the collection of knowledge related to ऋत | यजुर्वेद का अर्थ है, the collection of knowledge related तो यज  | यज धातु है, जिस से यज्ञ बनता है |  यज धातु के तीन meaning हैं | दान, उपासना और समीकरण | लोग आग में घी डाल रहे हैं कि हम यज्ञ कर रहे हैं |

यज धातु के तीन meaning हैं – 1. दान, यानी minus, घटाना २. उपासना यानी पास पास बैठाना, उप माने नजदीक आसना माने बैठना ३. समीकरण – जोड़ना | आग में घी डाल रहे हैं तो ये भी तो समीकरण कर रहे हैं सब | यज्ञ हो रहा है | Everything is यज्ञ | ये पूरा universe यज्ञ से ही चल रहा है | चीजें जुड़ रही हैं एक दूसरे से, चीजें अलग हो रही हैं एक दुसरे से, चीजे पास आ रही हैं एक दुसरे के | ये पूरी सृष्टि इसी तरह से चल रही है | ये पूरा संसार एक यज्ञशाला है | इसको समझने की बजाय आग में घी डालने को समझ लिया है कि यही यज्ञ है, that’s All | ये यज्ञ नहीं है |

तीसरा है सामवेद | साम means fine arts | Music, Poetry इस से related knowledge जहाँ collect की गयी है, that is सामवेद संहिता | अथर्व, अथर्व का meaning है materialistic knowledge. अथर्ववेद, collection of knowledge related materialism. चार ये वेद हैं, knowledge तो एक ही है, compact, उस knowledge के चार डिवीज़न महर्षि व्यास ने किये हैं | वो knowledge तो बिखरी पड़ी है पूरी universe में, उस knowledge को सात ऋषियों ने collect किया | वेदों को आप पढेंगे, हर मन्त्र का एक दृष्टांत ऋषि है वेद में | सात ऋषियों ने ये knowledge collect की थी और बाद में महर्षि व्यास ने subject-wise उस knowledge को चार हिस्सों में डिवाइड किया | व्यास शब्द का जो literal meaning है, व्यास नाम नहीं था उसका, नाम तो उस ऋषि का था कृष्ण द्वैपायन | नाम real तो कृष्ण था, द्वैपायन का अर्थ होता है second | क्योंकि उस युग में, उस period में दो कृष्ण हुए थे | एक कृष्ण जो भगवान् थे और दूसरा कृष्ण जो वो ऋषि था, तो भगवान् को हम कृष्ण first कह सकते हैं और उसको कृष्ण द्वैपायन यानी second कृष्ण कहा जाता था और उसने चार हिस्सों में उस knowledge को डिवाइड किया इसलिए उसको कहते हैं व्यास | व्यास का literal meaning है, diameter, जो किसी वृत्त को चार बराबर बराबर टुकड़ों में डिवाइड करता है, उसको व्यास कहते हैं | इसलिए उस कृष्ण का नाम व्यास भी पड़ा | व्यास शब्द का एक meaning और है, इसी व्यास ने पुराण लिखे सब | व्यास का एक meaning और है, वो उस पर लागू होता है, जो उसने दूसरा काम किया, पुराण लिखने का  | व्यास का meaning है collaboration, विस्तार से किसी चीज को समझाना | ये व्यास है | उसने उस knowledge को जो उसने वेदों में लिखा था, फिर उसको 18 पुराणों में लिखा, आम  आदमी के लिए क्योंकि आम  आदमी  के पास इतना दिमाग नहीं है | वो जानता था व्यास कि सूर्य ग्रहण तब पड़ता है जब सूर्य और धरती के बीच में चंद्रमा आ जाता है | ये बात, जो वेदांग ज्योतिष है, वेदों का एक हिस्सा ज्योतिष है उसमें ये बात क्लियर लिखी गयी है, उसी बात को जब पुराण लिखने बैठा व्यास तो उसने कहा, केतु  खा जाता है सूरज को और चन्द्र ग्रहण का कारण उसने बताया कि राहू खा जाता है चन्द्रमा को |

राहु केतु कोई ग्रह नहीं है, ज्योतिष शस्त्र बतलाता है ये बात  क्लियरकट | राहु और केतु छायाएं है | चंद्रमा की छाया का नाम केतु है और धरती की छाया का नाम राहु  है | जब धरती की छाया में चंद्रमा आ जाता है, चन्द्र ग्रहण लगता है और जब धरती आ जाती है चंद्रमा की छाया में तो सूर्य ग्रहण महसूस होता है | क्लियरकट ज्योतिष में लिखा है, ये बिम्ब ग्रह हैं, real ग्रह नहीं है आसमान में | साफ़ साफ़ लिखा है सूर्य सिद्धांत में | सूर्य सिद्धांत आप पढेंगे | पांच सिद्धांत ग्रन्थ है ज्योतिष के oldest, पांचो में साफ़ है | वेदांग ज्योतिष में साफ़ साफ़ लिखी है ये चीज | उस व्यास ने, एक lay man को समझाने के लिए क्योंकि उसको कहाँ तक समझाएगा |  जैसे आपसे कोई बच्चा सवाल करता है तो आप बहुत से सवालों के जवाब कैसे देते हैं, चालू | इस तरह से उसने वहां जवाब लिखे, लोगो को समझाने के लिए | ये पुराण lay man के लिए लिखी गयी थी, कहानियाँ बनाई गयी थी | उस knowledge को सुरक्षित रखा गया | तो सबसे पहले ग्रन्थ प्राचीन जो हैं,वो चार वेद हैं | फिर चार उपवेद और हैं हमारे यहाँ | धनुर्वेद, नाट्यवेद, आयुर्वेद ……एक और मैं miss कर रहा हूँ नाम |

यजुर्वेद (एक श्रोता)

यजुर्वेद तो वेद है, मैं उपवेदों की बात कर रहा हूँ | आयुर्वेद उपवेद है, धनुर्वेद उपवेद है | धनुर्वेद में केवल धनुष चलाना नहीं सिखाया जाता था, धनुर्वेद में गणित में हम जिसे त्रिकोणमिति कहते हैं, वो भी सीखनी पड़ती थी | वो उसका पार्ट था | हमारे यहाँ गणित कोई अलग विषय नहीं था  | गणित की कोई चीज कहीं थी, कोई चीज कहीं, जहाँ जहाँ जिस चीज का उपयोग था वो चीज वहां वहां पढ़ाई जाती थी | ८०% गणित ज्योतिष शास्त्र का एक हिस्सा था | कुछ धनुर्वेद का हिस्सा था गणित | कुछ छंदशास्त्र का भी हिस्सा है | ये जो permutation, combination होता है गणित में ये छंद शास्त्र का हिस्सा है | उन्ही चार वेदों से चार उपवेद बने | उन्ही चार वेदों से, वैदिक संहिताओं से छह शास्त्र निकले | शिक्षा, कल्प, ज्योतिष, व्याकरण, निरुक्त और छंद | ये छः हमारे यहाँ शास्त्र निकले | यानी सारी knowledge को पहले चार हिस्सों में डिवाइड किया गया और फिर उस knowledge को छः हिस्सों में डिवाइड किया गया, जिसको हम शास्त्र कहते हैं | बाद में आज के जितने सब्जेक्ट हैं, वो सब इन्हीं छः शास्त्रों में इन्हीं में से किसी न किसी के अंतर्गत आते हैं |

फिर शास्त्रों के बाद में philosophies (दर्शन) हैं, वेद में | मैं वेदों के बारे में बता रहा हूँ कि वेदों में क्या क्या चीज हैं  | वेदों में छः philosophies हैं | छहों philosophies को दो हिस्सों में बांटते हैं हम, तीन आस्तिक philosophies हैं और तीन नास्तिक philosophies हैं | ये मत समझिये कि वेदों में नास्तिक philosophies नहीं हैं | वेद का मतलब है, complete knowledge, सम्पुर्ण ज्ञान | वो सम्पूर्ण तब है जब आस्तिक और नास्तिक दोनों philosophies उसमें होंगी |

नास्तिक का अर्थ क्या है ? नास्तिक का मतलब भगवान् से या धर्म से नहीं है | आस्तिक शब्द बनता है ‘अस्ति’ शब्द से | संस्कृत में जो ‘अस्ति’ शब्द है, अंग्रेजी में उसके लिए शब्द है ‘is’. Ram is going, राम जा रहा है | अंग्रेजी में जिसको ‘is’ कहते हैं, हिंदी में जिसको ‘है’ कहते हैं, संस्कृत में उसको ‘अस्ति’ कहते हैं | यानि किसी चीज की presence | किसी चीज का होना, ये ‘अस्ति’ है | आस्तिक में ‘इक’ लगा है, एक प्रत्यय लगा है, suffix लगा है, जिस से आस्तिक बनता है, अस्ति से | जिसका अर्थ होता है, वो आदमी, जो ये मानता है की “है” | “Something is” और नास्तिक का अर्थ है कि जो मानता है कि नहीं है | क्या है और क्या नहीं है ? जो कुछ हमारी जानकारी में है, जो मानता है कि इसके आगे और कुछ नहीं है, वो नास्तिक है अर्थात हम जितना जानते हैं, that’s All. ये नास्तिकता है | ये universe जो visible है, जिसे हम इन्द्रियों से जान सकते हैं | हम मानते हैं, कि इन इन्द्रियों से जानने वाली जो चीजें हैं, इसके अलावा कुछ नहीं है, जो केवल इस universe को ही सत्य मानते हैं, वो नास्तिक हैं और जो मानते हैं कि इस universe के परे भी कुछ है, इसके अलावा भी कुछ है, वो आस्तिक कहलाते हैं |

तो तीन दर्शन आस्तिक हैं और तीन नास्तिक हैं | नास्तिक दर्शन, इस संसार को explain करते हैं, इसके बारे में जानकारी देते हैं और आस्तिक दर्शन, इस संसार के अलावा जो कुछ है, उसकी जानकारी देते हैं | आस्तिक दर्शन हैं हमारे यहाँ, मीमांसा, योग और वेदांत |  नास्तिक दर्शन है हमारे यहाँ, सांख्य, वैशैशिक और न्याय | सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए दोनों दर्शन पढने चाहिए | भारतवर्ष का दुर्भाग्य रहा कि महाभारत युद्ध के बाद जो विभीषिका देखी लोगो ने, जो विनाश देखा उन्होंने तो भारतवर्ष के संतो और ज्ञानियों ने नास्तिक दर्शनों का निषेध कर दिया | उन्होंने बताया कि ये दुनिया तो पानी है, ये दुनिया तो झूठी है, ये दुनिया तो मिथ्या है | सत्यम ब्रहम, वही सत्य है, वहीँ जाओ, आस्तिक दर्शनों में जाओ | दुनिया के परे की चीजों को समझो, दुनिया को मत समझो | इसका नतीजा ये हुआ कि महाभारत की विभीषिका के बाद भारत दुबारा उठ कर खडा ही नहीं हो पाया | दुसरे देशों ने खूब रौंदा और रौंद कर चले गए क्योंकि हमने भौतिक शक्तियां हासिल की ही नहीं, उनका निषेध कर दिया गया  | ज्ञान को हमारे को अधूरा कर दिया गया | सम्पूर्ण ज्ञान का अर्थ है कि आप इस दुनिया को और इस दुनिया के परे जो है,  दोनों को समझे | सम्पूर्ण ज्ञान कर अर्थ है कि आप शरीर के बाहर को भी जाने और इस शरीर के भीतर जो कुछ भी है, उसको भी जाने | Incomplete हम लोगो को कर दिया गया, जिसकी वजह से आज तक हम उन लोगों से पिट रहे हैं | उन लोगों से जो हमसे भी ज्यादा incomplete हैं | जो हमसे भी ज्यादा अधूरे हैं, उनसे पिट रहे हैं | क्योंकि हमको एक चीज का निषेध किया गया |

गीता आप पढ़ें | गीता दो दर्शनों की पुस्तक है, सांख्य और वेदान्त | वेदांत आस्तिक दर्शन है, सांख्य नास्तिक दर्शन है | गीता दोनों को मिला कर बताती है कि This is the way of Life. अगर हम way of life को जानते हैं और ठीक से जीवन जी रहे हैं, दुःख होने का हमको सवाल ही नहीं उठता | ये जो छः दर्शन है, वो जो वेदों से छह विषय निकाल कर छह शास्त्र बने | जैसे चार विषय निकाल कर चार उपवेद बने | उन्हीं में से छः दर्शन निकाल करके छः उपनिषद बने | वो एक सौ आठ हैं | उपनिषदों के साथ साथ उसी समय पर आरण्यक ग्रन्थ बने | आरण्यक माने जो जंगल में बैठ कर लिखे गए | इन्ही को ब्राहमण ग्रन्थ भी कहते हैं | वो भी बहुसंख्य हैं | इन सबकी जो भाषा है, आरण्यक ग्रंथो की, उपनिषदों की और वेदों की, सबकी भाषा वैदिक संस्कृत है | उसके बाद जितने ग्रन्थ लिखे गए, उनकी भाषा लौकिक संस्कृत है | लौकिक संस्कृत और वैदिक संस्कृत दो अलग अलग भाषाएँ हैं | सारे 18 पुराण लौकिक संस्कृत में लिखे गए | सब स्मृतियाँ लौकिक संस्कृत में लिखी गयी | स्मृतियाँ मतलब bio-loge. ये समय समय पर बदलती रहीं | ऐसा नहीं है कि कुछ fix हो कि यही follow करनी है | वक्त के मुताबिक़, उनमें फेर बदल हुए | हमारे यहाँ तो सबसे पुरानी स्मृति है, वो है मनु स्मृति | बाद में, मनु स्मृति के बाद जो सबसे ज्यादा popular स्मृति हुई, वो याज्ञवल्क्य स्मृति हुई | आज हिन्दू code-will , भारत में जो है, वो याज्ञवल्क्य स्मृति के आधार पर बना हुआ है | हिन्दू में इसे marriage act बोलते हैं | इन स्मृतियों में समय समय पर वक्त के हिसाब से change हुआ है, पर लोग समझते हैं कि बस ये लिखा है, बस यही सही है और फिर कुश्ती होती है कि अरे वहां तो ये लिखा है और दूसरा कहता है कि ये लिखा है | तीसरा कह रहा है कि अरे यार पता ही नहीं है कि क्या सही है दोनों में से | मनु स्मृति कह रही है कि एक मनुष्य कई विवाह कर सकता है, याज्ञवल्क्य स्मृति कह रही है कि एक ही विवाह करना चाहिए | कितना बड़ा अंतर है | बहुत राजाओं ने कई विवाह किये | दशरथ ने तीन विवाह किये, राम ने एक ही किया | अब आदमी confuse है | वो कह रहा है मैं इस स्मृति को मानता हूँ, दूसरा कहता है मैं इस स्मृति को मानता हूँ |

सुख, अब मैं अपनी बात पर आ जाता हूँ | इसके बाद फिर literature है, literature में सबसे पुराना ग्रन्थ जो है, रामयाण और महाभारत | रामायण पुराना है और महाभारत नया है | ये दोनों literature हैं, religious books नहीं हैं, ये ध्यान रखना | महाभारत और रामायण दोनों epic हैं और epic दो तरह के होते हैं | epic of art and epic of growth.  रामायण और महाभारत, epic of growth हैं | इनमें addition होते रहते हैं, कथाएं बदलती रहती हैं | जितनी रामायण हैं, हिन्दुस्तान में हजारों रामायण हैं, सबकी कथाएं, उनमें थोडा बहुत फेर बदल मिलेगा आपको | कृत्तिवासी रामायण में भगवान् राम ने युद्ध से पहले, कृत्तिवासी रामायण, जो बंगला में है, उसमें लिखा है भगवान् राम ने रावण से युद्ध करने से पहले दुर्गा जी की पूजा की थी | तुलसीदास जी ने अपनी रामायण में लिखा कि शंकर जी की पूजा की, युद्ध से पहले | तो ऐसे differences आपको मिलेंगे, क्योंकि ये literature है, अपनी कल्पना से लिखे गए हैं, ये पुराण नहीं है | फिर और बहुत सा साहित्य लिखा गया, भारतवर्ष में | मैं समझता हूँ काफी है इतना |

अब आ जाते हैं, आदमी के सुख की बात पर कि हम एक सुखी जीवन कैसे जी सकते हैं ? हमें कोई परेशानी न हो, दुखी न रहें | ये जानने के लिए कि हम कैसे एक सुखी जीवन जी सकते हैं, हमें पहले ये जानना पड़ेगा कि सुख है क्या चीज ? तब तो हम सुखी जीवन जी सकते हैं | मैं ज्योतिष का काम करता हूँ, मैं अपने कुछ experiences बताता हूँ | एक आदमी सुबह आता है जन्मपत्री लेकर के कि पंडित जी, लड़का नहीं है एक भी | कोई उपाय बताइये जन्मपत्री देख करके ताकि लड़का हो जाए तो सुख मिले, बड़ा दुखी हूँ | आधा घंटे बाद दूसरा आदमी मेरे पास आता है, कहता है, पंडित जी लड़के बड़े दुष्ट हैं, कोई उपाय बताइये, इनसे पीछा छूट जाए, तब चैन मिले | मैं नहीं समझ पाता हूँ कि दोनों जगह में से सुख किस जगह है ? संतान होने में या संतान से पीछा छूटने में ? एक आदमी मेरे पास आता है कि पंडित जी शादी नहीं हो रही है, शादी हो जाए तो सुख मिले | दूसरा आदमी कहता है, पंडित जी बड़ा दुखी हूँ, कोई उपाय बताइये, तलाक हो जाए तो सुख मिले | अब मैं सोच रहा हूँ, कि सुख कहा है, divorce में, या marriage में ? कोई आदमी शरीर से दुखी है, कोई किसी चीज से दुखी है, कोई किसी चीज से दुखी है | मुझे कोई सुखी नहीं मिलता है | कोई इसलिए दुखी है कि घर बहुत छोटा है, कोई इसलिए दुखी है कि घर इतना बड़ा है कि उसकी cleaning भी नहीं कर पाता हूँ | घर में अकेले बोर हो रहा हूँ | घर में सुख है कि दुःख है ? मेरी ये ही नहीं समझ में नहीं आ पाया  आज तक | क्या है सुख ? क्या है दुःख ? पहले इसे clear करें |

सुख और दुःख जब हम देखते हैं, एक चीज में किसी आदमी को सुख लग रहा है, उसी चीज में दुसरे आदमी को दुःख लग रहा है | एक चीज एक आदमी को दुःख दे रही है, वही चीज दुसरे आदमी को सुख  दे रही है | फिर सुख दुःख कहाँ है ? बैंथम एक फिलोस्फर हुआ है, उसने कहा है –

Nature has placed two sovereign masters – Pain & Pleasure, which govern us, in all way say, in all we think and in every efforts.

वो कहता है कि प्रकृति ने दो सर्वशक्तिमान स्वामी दिए हैं, सुख और दुःख | वो हमको चला रहे हैं | हम जो भी सोचते हैं, जो भी करते हैं, जो कुछ भी effort करते हैं, सब इन्ही की वजह से करते हैं | हर काम हम सुख पाने के लिए कर रहे हैं और दुःख से बचने के लिए कर रहे हैं और ये सोच भी इसीलिए रहे है, इस सुख दुःख की वजह से और जो कुछ बोल रहे हैं वो भी सुख दुःख की वजह से | सुख दुःख सब करा रहा है पर सुख दुःख अपने आप में हैं क्या ? मैं देखता हूँ, तो मैं पाता हूँ, मैं ज्योतिष का काम करता हूँ, मैं देखता हूँ कि मेरे पास जितने लोग आते हैं उसमें से १००% लोग दुखी ही आते हैं | सुखी आदमी तो मेरे पास आता ही नहीं है | जो भी जन्मपत्री लेकर आ रहा है, वो दुखी है किसी न किसी बात से | तो मैं सोचता हूँ कि इस दुनिया में क्या कोई सुखी भी है | हमारे यहाँ, गुरु नानक ने कहा था, नानक दुखिया सब संसार | उसने बड़ी सही बात कही थी | बात तो बैंथम की भी सही है कि ये दो चीज हमको govern कर रही है, बात नानक की भी सही है कि सब दुखी हैं, मैं भी यही महसूस करता हूँ | लेकिन सुख दुःख हैं क्या ?

सुख दुःख हमारे creation हैं | अब आपकी बात का जवाब यहाँ से मिलेगा | Emotions हमारे basic instincts नहीं हैं, हमारे creation हैं क्योंकि सारे emotions इन्हीं दो चीजो से create होते हैं | पहले सुख दुःख को समझ लें, फिर emotion को समझेंगे कि ये कैसे create होते हैं | बाकायदा Scientifically समझाऊंगा, उदाहरण देकर के |

सुख  दुःख क्या है ? ये हमारे creations हैं, हमारे create किये हुए हैं | हम create करते हैं | वास्तव में इस दुनिया में कहीं सुख नहीं है, कहीं दुःख नहीं है | मैंने अभी उदाहरण दिया, मेरा पोता आता है, मेरे बाल खींचता है, मेरा चश्मा खींचता है, मैं खुश होता हूँ | मैं अपनी पत्नी को बताता हूँ कि देखो मेरा बाल खींच रहा है, मेरा चश्मा खींच रहा है | चश्मे को तो छोड़ता ही नहीं है | वो भी ख़ुशी होती है | कभी कभी तो मैं बुलाता हूँ अपने पोते को और कंधे पर चढ़ा कर demonstrate करा के दिखाता हूँ कि बेटा देख चश्मा चश्मा ताकि वो खींचे और वो जब नहीं खींचता तो मुझे दुःख होता है | आप देखिये कि वो जब खींचता है तो मैं सुख महसूस करता हूँ | इन्हीं मूछों को मेरा पडोसी खींच देता है तो झगडा हो जाता है | तब मुझे दुःख लगता है | अब सोचिये कि मूंछ के खींचने में सुख है या दुःख है ? अगर उसमें सुख होता तो पडोसी के खींचने पर में दुखी क्यों हुआ ? और अगर उसमें दुःख होता तो अपने grandson के खींचने पर मैं खुश क्यों होता ? वास्तव में सुख दुःख कहीं नहीं है, सुख दुःख हमारे thought process से create होते हैं | सुख दुःख हमारे कर्मो का फल है | कर्म क्या चीज है ? ये जो हम हाथ पैरों से करते हैं, ये कर्म नहीं है, ये समझ लीजिये !

ये मैगज़ीन सबको दे देना, उसमें एक आर्टिकल है, कर्म | हाथ पैरों से जो कर रहे हैं, ये कर्म नहीं है, ये क्रियाएं हैं, लोग समझते हैं कि ये कर्म हैं | कर्म वो हैं जो हम सोचते हैं, जो हम महसूस करते हैं, जो हमारे भीतर desires होती हैं, जो हमारे भीतर emotion होते हैं | प्यार, डर, घृणा, द्वेष ये सब कर्म हैं और हाथ पैरों से जो कर रहे हैं वो क्रियाएं हैं | थोड़ी देर रुक जाऊं ? अगर आप confuse न हों तो मैं कर्म को भी क्लियर करना चाहता हूँ | क्रिया होती है non-living चीजों में | कर्म करता है living. आपकी मोटर non-living है, non-living की पहचान ये होती है कि उसमें खुद की कोई power नहीं होती | उसमें अपनी कोई desires नहीं होती | आपकी मोटर में न अपनी कोई desire है कहीं जाने की और न ही उसमें कोई power है | लेकिन क्रिया करती है वो, चलती है | motion होता है उसमे, वो मुडती भी है इधर उधर, वो टकराती भी है | वो क्रिया करती है | टकराना, चलना, मुड़ना ये सब क्रियाएं हैं | क्रिया होती है non-living चीजों में | लेकिन मोटर अपने आप कोई क्रिया नहीं कर सकती | हर क्रिया का एक कर्ता होता है | चाहे हम grammar में देख लें इस चीज को, चाहे हम साधारण जीवन में देख लें इसको | मोटर तब एक क्रिया करेगी, जब एक ड्राईवर जाकर बैठेगा उसमें, एक कर्ता जा कर बैठेगा उसमें | बिना ड्राईवर के मोटर नहीं चलेगी | क्रिया non-living करता है लेकिन उस क्रिया को कराने वाला एक कर्ता  होता है | वो कर्ता living होता है | हर मशीन को चलने वाला एक इंसान होता है | आपकी मोटर को चलाने वाला भी एक इंसान है, living. हम यानी प्राणी, प्राणी से मतलब केवल मनुष्य से नहीं है ये ध्यान रखें | पशु, पक्षी सब, जितने भी प्राणी है, दो चीजो से मिलकर बने हैं क्योंकि पूरा universe योग से बना है और यज्ञ से चल रहा है | योग माने दो चीजों का मिलना, एक नेगेटिव और एक पॉजिटिव चीज जब मिलती है आपस में तब fusion होता है | matter destroy होता है और energy में convert हो जाता है | इसी तरह से ये दुनिया बनी है | अब मैं यहाँ इस चीज को क्लियर नहीं करूँगा….|

खैर, मोटर क्रिया करती है | living है वो कर्ता, वो कर्म करता है | जितने प्राणी है, दो चीजो के मिलने से बने है, दो चीजो के योग से बने हैं | एक है जड़ और एक है चेतन | जड़ मतलब non-living और चेतन मतलब living. हर प्राणी दो चीजों से मिलकर बना है | ये जो body है, this is non-living और इसको चलाने वाली जो power है that is living. वो चेतन है | जिस वक्त वो चेतन निकल जाता है इसमें से, जैसे उस मोटर में से ड्राईवर निकल जाए, जैसे ड्राईवर के निकल जाने पर वो मोटर हिल नहीं सकती है ऐसे ही जब वो चेतन निकल जाता है इस शरीर में से तो ये हाथ होते तो हैं, पर हिलते नहीं है | पैर होते हुए चलते नहीं है, कान होते हुए सुनते नहीं है, ये आँख होते हुए देखती नहीं है | यानी ये कोई क्रिया नहीं होती है | यानी ये जितनी क्रियाएं हैं ये non-living पार्ट करता है हमारा | वो जो living पार्ट है, वो जो कर रहा है, वो है कर्म | क्रियाएं सबको दिखाई देती हैं क्योंकि visible body में होती हैं इसलिए इस visible body से होने वाली जो क्रिया है उसका जो प्रोडक्ट है वो भी visible है | क्रियाएं दिखाई देती हैं लेकिन जो living body है भीतर वो किसी को दिखाई नहीं देती | उससे होने वाला जो कर्म है वो भी किसी को दिखाई नहीं देता | हमारे अन्दर जो मन है, बुद्धि है, चित्त है, अहंकार है, ये उस living के, उस चेतन के चार पार्ट हैं | जैसे इस body के १० पार्ट हैं, दस इन्द्रियां, जो हम बताते हैं ऐसे उस चेतन के चार पार्ट हैं, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार | वो जो कुछ कर रहे हैं, वो कर्म है और ये जो दस इन्द्रियां जो कर रही हैं, ये क्रियाएँ हैं | ये visible है वो non-visible है | हमारी बुद्धि क्या सोच रही है, कोई नहीं जान सकता है | हमारे मन में क्या भाव आ रहे हैं, कोई नहीं जान सकता है | हमारी इच्छा क्या है, कोई नहीं जान सकता, किसी को नहीं दिखाई देगी, लेकिन ये body जो कुछ भी क्रिया कर रही है, सबको दिखाई देगा | क्योंकि body is visible इसलिए body से होने वाली जो क्रियाएँ हैं, वो भी visible हैं | वो जो चेतन है, वो non-visible है, living पार्ट, उस से होने वाले जो काम हैं, जो non-visible हैं वो कर्म है | वो देखे नहीं जा सकते, किसी का भी कोई नहीं देख सकता |

क्रियाओं की लिमिट होती है, क्योंकि इस body की, जो non-living है, उसकी भी limitation है | आपकी कार हवा में नहीं उड़ सकती है, आपकी कार पानी में नहीं तैर सकती है | उसकी limitations हैं, हर non-living चीज की limitations होती हैं | इस body की भी limitations हैं, ये हाथ ऐसे मोड़ा जा सकता है, ऐसे नहीं मोड़ा जा सकता है (हाथ को उलटी दिशा में घुमाते हुए) | ये पैर पीछे को मोड़ा जा सकता है, आगे को नहीं मोड़ा जा सकता | इसकी limitations हैं तो इससे  होने वाली जितनी क्रियाएँ हैं, actions हैं, उनकी भी limitations हैं | लेकिन वो जो भीतर living है, उसकी कोई limitations हैं, वो unlimited है, उससे होने वाले कर्म भी unlimited हैं | वो जो हमारे भीतर विचार उत्पन्न होते हैं, वो जो हमारे भीतर भाव उत्पन्न होते हैं, वो जो हमारे अन्दर अनुभूति उत्पन्न होती हैं, हमारे अन्दर इच्छाएँ उत्पन्न होती हैं, ये सब unlimited  हैं | उनमें से कुछ क्रिया में convert हो जाती हैं, कुछ एक्शन में convert हो जाती हैं, हम कुछ चीज सोचते हैं और कर डालते हैं | कोई फीलिंग हमारे मन में आती है, हम कर डालते हैं | कोई इच्छा हमारे मन में आती है उसको हम करते हैं | यानी कर्म के साथ साथ क्रिया होती है, लेकिन बहुत से कर्म ऐसे होते हैं, जो क्रिया में convert नहीं होते हैं | तो कर्मो को हमारे शास्त्र दो प्रकार का बतलाते हैं, एक क्रियमाण कर्म और एक प्रारब्ध कर्म | क्रियमाण कर्म वो हैं जो क्रिया में convert हो गए, प्रारब्ध कर्म वो हैं जो क्रिया में convert नहीं हुए | क्रियमाण कर्म के रिजल्ट मिलते हैं, प्रारब्ध कर्म स्टोर होते रहते हैं क्योंकि वो क्रिया में convert नहीं हुए हैं, वो मरने के बाद साथ जाते हैं | जब मौका मिलता है तब वो क्रिया में convert होते हैं और तब उनके रिजल्ट आते हैं | क्रियमाण कर्म जो हैं, एक ही क्रिया अलग अलग तरह के कर्म से हो सकती है यानी एक ही क्रिया के पीछे अलग अलग motives हो सकते हैं | motives यानी कर्म | जैसे एक आदमी फूल तोड़ता है, बाजार में बेचना चाहता है, चार पैसे कमाना चाहता है यानी उसका जो पीछे thought है वो ये है, बाहर उसने क्रिया एक की, फूल तोड़ने की | उस से motivate हुआ | एक दूसरा आदमी भी फूल तोड़ रहा है, वो इसे तोड़ करके अपनी पत्नी के बालो में लगाना चाहता है | प्रेमिका के बालों में लगाना चाहता है | क्रिया दोनों ने एक ही की है लेकिन दोनों के कर्म अलग अलग हैं | एक तीसरा आदमी भी फूल तोड़ रहा है वो फूल तोड़ कर भगवान् के चरणों में चढ़ाता है | क्रिया तीनो एक सी कर रहे हैं लेकिन कर्म तीनो के अलग अलग हैं | एक चौथा आदमी फूल तोड़ता है वो सूंघता है और फ़ेंक देता है फूल को | चारों के कर्म अलग अलग है, फूल तोड़ने की क्रिया एक ही है | क्रिया लिमिटेड होती है, कर्म unlimited होते हैं | Result कर्म का मिलता है, क्रिया का नहीं | फल जो मिलता है वो कर्म का मिलता है, क्रिया का नहीं मिलता है | एक आदमी रास्ते में जा कर गन लेकर के गोली मार देता है दस आदमियों को, पुलिस उसको पकड़ लेती है और उसको फांसी हो जाती है | एक आदमी बॉर्डर पर खड़ा हो करके दुश्मन के सिपाहियों को मारता है उसको प्राइज मिलता है, ईनाम मिलता है | क्रिया तो दोनों की एक ही है | फल दोनों के अलग अलग हैं क्योंकि कर्म दोनों के अलग अलग हैं | Motivation अलग है दोनों का | कर्म का फल मिलता है क्रियाओं का नहीं |

लोगो का ये अज्ञान कि हम जो कर रहे हैं बस यही कर्म है, इसको सुधारिए, भगवान् का नाम ले लेंगे, भगवान् के आगे फूल चढ़ा देंगे, कर्म सुधर गया हमारा, कर्म नहीं सुधरा है ! आप गलतफहमी में हैं | ये अज्ञान दुःख का कारण होता है | जो चीज सही करने की है उसको तो हम जानते ही नहीं है और जो चीज बेकार की है उसमें सारी ताकत लगाए दे रहे हैं | इस शरीर को शुद्ध करने के लिए पूरी शक्ति लगाए दे रहे हैं और भीतर जो बैठा है चेतन, भीतर जो बैठा है living, उसके लिए क्या कर रहे हैं, उसको कोई भोजन दे रहे हैं | इस शरीर को तो खूब खाना खिला रहे हैं बढ़िया बढ़िया ला ला कर के | इसके लिए बढ़िया बढ़िया शैम्पू लगा रहा हैं, उसके लिए कोई शैम्पू है ? वहां जो वायरस घुसते जा रहे हैं, उसको साफ़ करने के लिए कुछ है हमारे पास ? कोई वायरस रिमूवल है हमारे पास ? कोई साबुन है ? उसके भीतर जो कमजोरी आती चली जा रही है उस कमजोरी को दूर करने के लिए कुछ फ़ूड है हमारे पास ?

 To Be Continued…….

April 6, 2018

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