लिफाफा देखते हो खत का मजमू् भापने की
तमीज् ऐक दिन में ही नहीं आती, वर्षो खत
वाँचने पड़ते हैं।आदमी के चेहरे पर कुछ नहीं
लिखा रहता वर्षों आदमी जाँचने पड़ते हैं ।तब
कहीं जाकर समझ में आता है।आदमी के दिल
और दिमाग में जो नाता हैं । अखबारों की
खबरों में आदमी का मन ढूँढना
अखबारों की खबरों में आदमी का मन ढूँढना
बेमानी है ।और किनारे बंठकरn मछली से वो
पूछना भी नादानी है समन्दर नापने के लिये
बनना पड़ता है– सीपी, मोती या शंख ।
आसमान नापने के लिये जरूरी है–शरीर पर
उगे हों जटायू की तरह नहीं,संपाती की तरह
पंख ।तब कहीं जाकर दिखाई देता दे आदमी
के भीतर का यूरज ही नहीं चन्द्रमा भी ।आदमी
का मन बड़ा नायाब है कस. कोई तिलिस्म नहीं
एक खुली किताब है सूची से आगे भी पढ़ा जाय ।
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