अब तक जो राहों का पत्थर कह जाते थे
कल वे ही मेरा वन्दत करने आएंगे ।
आज अगर मैं अनगढ़ हो तो, इससे क्या है !
मूति बनूँगा मैं ही, कल दुनिया पूजेगी।
जिनके तन को चोट लगी होगी कुछ मुझसे
उनकी ही आकुल बाहें मुझको हूढेंगी॥
मुझे चौथ का चन्दा जो कहते थे अब तक
वे ही पूनम को दर्शन करने आएंगे।
कल वे ही मेरा वन्दन करने आएंगे।॥
सुन॒ लो ओ चौराहों पर लगी मूर्तियों
मैं उगता सरज पहाड़ को लाँध रहा हें
बस्ती के संब लोग नमन करने आएंगे।
कल वे ही मेरा वन्दन करने आएंगे ॥।
माना, डाली के गुलाब को छू पाना भी
बहुत कठिन है, काँटों से लड़ना होता है ।
मगर जानता हूँ मैं यह भी, शिखरों तक
चढ़ने से पहले सीढ़ी पर चढ़ना होता है
मुझे डराते थे जो.अब तक निज काँटों से
वे गुलाब कल अभिनन्दन करने आएगे॥
कल वे ही मेरा वन्दन करने आएगे॥
जिनको मैंने जल कर स्वयं प्रकाश बाँटा है
उन पर मैं अहसान करूँ यह बहुत कठिन है ।
लेकित जिनके हैं मुझ पर अहसान बहुत से
उनसे उऋण हो: जाऊँ यह!तो मुमकिन है |
जिनकी एक नजर को कभी तरसता था मैं
वे ही मेरा आलिंगन’ करने आएंगे।
कल वे. ही मेरा : बन्दन करने आएं गे॥
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