आज सुबह से ही मधुवन में
जाने कैसी हवा चली है।
हर कनेर बीमार पड़ा है
मुरझाई प्रत्येक कली है।
हरे-भरे पौधों के पत्ते
फिर अपना रंग बदल रहे हैं।
चारों ओर नकाबों वाले
काले चहरे टहल रहे हैं॥
ज॑ंसा आज हुआ है, ऐसा
पतझड़ में भी नहीं हुआ था।
धुआ घुट गया था सासों में
मधुप नहीं बेहोश हुआ था ॥
मगर आज की चहल-पहल में
कैसी. खामोशी छाई है।
तड़के उठने वालों के घर
जाग नहीं होने पाई है।॥
लगता है फिर से गौतम ने
यशोघरा सोती छोड़ी है ।
और पिता से विलग पुत्र की
उमर अभी बहुत थोड़ी है ॥
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