डा0 अशोक शर्मा का जन्म 9 अक्टूबर 7947 ईै0 को हाथरस (ण४प्र0) में हुआ। आपके
प्रिता पण्डित बैजनाथ शर्मा, गणित, खगगोरेल विज्ञान एवं ज्योतिष को मर्मज्ञ थै। पण्डित
बैजनाथ जी ने एक यंत्र का आविष्कार किया था, जिम्त की उन के समकालीन ज्योतिषियों
कत्तथा खग्रोलविदों ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की थी। उत्तर प्रदेश को तत्कालीन राज्यपाल
गहागहिम्र विश्वनाथवदास ने पण्डित बैजनाथ जी को राजभवन में बुलाकर सम्मानित भी किया
था। आप की माताजी श्रीयती कृष्णकान्ता शर्मा सस््कारशील गृहिणी थीं। पारम्परिक शिक्षा
ग्रहण करने वाले जाए अज्ञोक शर्मा की लब्ष प्रतिष्ठ प्रज्ञा निरन्तर नए मानकों का सस्पर्श
करती रही। बाल्यकाल में ही अपने पिताजी के संत्तर्ग में आप ने श्रुत्िब्रोध’ शीघ्रबोध’ तथा
‘लघुतच्रिद्धान्त काँगुदी’ का गहन अध्ययन किया; जिससे आपकी कारयित्री एवं ग्रावयित्री
प्रतिभा जागरित हुर्ड । 30 सितम्बर 20/2 को अलीग्रढ में ज्योतिष सेमिनार में हृदयाघात से
आप का निधन हुआ। स्वातन्त्रयोत्तर हिन्दी कविता में लोक–जीकन’ विषय पर ॥977 0 में
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आपने डाए लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय के निर्देशन में डीएफिलृ0 की
ज्पाधि प्राप्त की। ‘जग्रहर ज्योति: गन संपाती सॉकलें टूटी पड़ी है. अनंग्र, मैं हस्ताक्षर
नहीं करूँग्रा, तथा दधीचि’ उनके काव्य ग्रन्थ हैं. जिनमें कथ्य और शिल्य का अदुगुतत
संगुम्फ़न है। आयरा विश्वविद्यालय से आप के गरीति-काव्य पर लघुशोधघ प्रबन्ध ग्रस्तुत हो
चुका है। आप के द्वारा संपादित प्राच्य गंजूया’ ग़न्ध प्राच्य विद्याओं को संरक्षण और संवर्दधन
का एक पुष्ट प्रमाण हैं ।
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