कमल सरीखी सूरत बातें चुभती नागफनती।
मुझको रही शिकायत दुनियाँ तुझसे बस इतनी ॥
केले को संगत बेरों की पीपल को नाली ,
दुष्ट खलों को अक्षत चन्दन स्तों को गाली ,
सुबद-शाम मन्दिर में पूजा दिन भर राहुजनी |
मुझको रद्टी शिकायत दुनियाँ तुझसे बस इतनी ॥
लोटा – डोर सरीखे रिश्ते कन्धे पर नाते ,
रहो जोडती अक्सर मुझसे तू आते – जाते ,
तक की दौड़, जिन्दगी हों न सकी तुझको राही
शिकायत दुआ तुझसे बस इतनी तंग घुमावदार
गलियाँ मैं बिना रोशनी चलना,हिमगिरि का श्रम
मन में बाँखें धीरे – धीरे गलना ,उल्टी पट्टी रही
पढ़ाती मुझकी रामजनीं । मुझको रही शिकायत
दुनियाँ तुझसें बस इतनी ॥
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