दर्शक दीर्घा में बेठा हुआ मैं
सामने देख रहा हूँ एक मैदान
जिसमें कुछ इन्सान अलग-अलग
ड्रैकों में दौड़ लगा रहे हैं
और मुझे छोड़कर
सभी दर्शक तालियाँ बजा रहे हैं।
यकायक गड़गड़ाहट तेज हो जाती है,
और एक खट्-खट् की आवाज
जो बहुत देर से मेरे सीने पर
हथौड़े की तरह चोट कर रही थी
खो जाती है। मगर मेरी आँखें
उस आवाज को ढूंढ लेती हैं–
एक प्रतियोगी है
.. जे बेसाखियों के सहारे
उसके पैर शायद पोलियो के शिकार हैं लेकिन,
वाह ! भले-चंगे लोग भी
उसके सामने बेकार हैं,
कोई उसे क्रॉस नहीं कर पाता ।
दर्शक, अपने-अपने स्थान पर
खड़े हो गये हैं
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