ज्ाज फिर पवैत्रंह्तं हैं अपना शहर।
फिर ते हांगां ग्रन््त हैं अपनी गहरे ।
7 मे माँ रहेंगाति कीई भी मरे
गज का अस्त हैं अपनों शहर ।।
किरं प्रमाकें हों रहें हैं हुर_ तरफ
रत में भी व्यस्त हैं अपना शहर।।
वींह के भिक्षुक दुआएं दे गए हैं
करंक्युओं में मह्त हैं अपना शहर ।॥।
शाह्ति हैं, संदृभाव है, सब टीक है
पुएंतः आश्वस्त है अपना शहर ॥
हॉकन हुही पड़ी है
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